बांग्लादेश की अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (ICT) द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना को मौत की सज़ा सुनाए जाने के बाद देश में अभूतपूर्व तनाव और हिंसा फैल गई है। हसीना को जुलाई 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान मानवता के ख़िलाफ़ अपराधों, विशेष रूप से हत्या के लिए उकसाने और हत्या का आदेश देने के मामले में दोषी ठहराया गया है।
सड़कों पर गृह युद्ध जैसे हालात
फैसले के बाद, हसीना की समर्थक पार्टी, अवामी लीग, के कार्यकर्ता और समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं।
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विरोध प्रदर्शन: ढाका समेत कई शहरों में यूनुस अंतरिम सरकार के ख़िलाफ़ ज़ोरदार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। समर्थक हाथों में मशाल लेकर सड़कों पर विरोध कर रहे हैं।
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हिंसा: पिछले 7 दिनों में हुई हिंसा और संघर्ष में कम से कम 28 लोगों की मौत की खबर है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए अंतरिम सरकार ने सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी है:
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सुरक्षाबलों की तैनाती: राजधानी ढाका में अकेले 15,000 पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया है।
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'शूट एट साइट' का आदेश: हालात को नियंत्रित करने के लिए सुरक्षाबलों को उपद्रवियों पर 'देखते ही गोली मारने' (Shoot At Site) का आदेश जारी किया गया है। यह आदेश बांग्लादेश में बढ़ती अस्थिरता और संघर्ष की गंभीरता को दर्शाता है।
तख़्तापलट और सज़ा का विवरण
शेख हसीना की सरकार का 5 अगस्त 2024 को तख़्तापलट हुआ था, जिसके बाद वह भारत चली गईं और तभी से वहीं रह रही हैं।
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मास्टरमाइंड का आरोप: ट्रिब्यूनल ने हसीना को 2024 के छात्र आंदोलन के दौरान हुई हत्याओं का मुख्य मास्टरमाइंड घोषित किया है।
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पूर्व गृह मंत्री को भी फाँसी: हसीना के साथ, पूर्व गृह मंत्री असदुज्जामान खान कमाल को भी 12 लोगों की हत्या का दोषी माना गया है और उन्हें भी फाँसी की सज़ा सुनाई गई है।
शेख मुजीबुर्रहमान के घर पर हमला
विरोध के दौरान प्रदर्शनकारियों ने पूर्व प्रधानमंत्री के परिवार पर भी निशाना साधा:
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प्रदर्शनकारियों का जमावड़ा: आज (रिपोर्ट के अनुसार) धानमंडी-32 के पास प्रदर्शनकारी जमा हुए थे।
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उद्देश्य: उनका मुख्य उद्देश्य हसीना के पिता, शेख मुजीबुर्रहमान (बांग्लादेश के संस्थापक) के घर के बचे हुए हिस्सों को गिराना था।
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कार्रवाई: भीड़ को तितर-बितर करने के लिए सेना और पुलिस ने लाठीचार्ज किया और कम से कम दो साउंड ग्रेनेड फेंके। इस झड़प में कई प्रदर्शनकारी और पुलिसकर्मी घायल हुए हैं।
वर्तमान में बांग्लादेश की सड़कें राजनीतिक प्रतिशोध, कानूनी फैसलों और लोकतंत्र के भविष्य को लेकर छिड़े संघर्ष का मैदान बन गई हैं। 'शूट एट साइट' का आदेश देश में एक बड़े मानवीय संकट और राजनीतिक अस्थिरता का संकेत दे रहा है।