तुर्की के रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम को लेकर पिछले कुछ दिनों से अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में तरह-तरह की अटकलें लगाई जा रही थीं. दावा किया जा रहा था कि तुर्की अब इन मिसाइल सिस्टम को किसी तीसरे देश, खासकर भारत, को देने पर विचार कर रहा है. इसके पीछे मुख्य उद्देश्य यह बताया जा रहा था कि तुर्की अमेरिका के साथ अपने तनाव को कम कर सके और बहुचर्चित F-35 लड़ाकू जेट प्रोग्राम में अपनी वापसी सुनिश्चित कर सके.
लेकिन मंगलवार को तुर्की की सेना के शीर्ष सूत्रों ने इन सभी दावों को पूरी तरह से खारिज कर दिया है.
सेना के शीर्ष सूत्रों ने किया दावों को खारिज
न्यूज आउटलेट तुर्किए टुडे ने अपनी रिपोर्ट में सैन्य सूत्रों के हवाले से स्पष्ट कहा कि S-400 सिस्टम को किसी भी देश को सौंपने का सवाल ही पैदा नहीं होता. सैन्य सूत्रों ने दो टूक शब्दों में कहा कि
यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि हाल ही में अमेरिकी राजदूत टॉम बराक ने कहा था कि अगले साल तक S-400 मुद्दे का समाधान निकल सकता है. उनके इस बयान के बाद विदेशी मीडिया में यह अटकलें तेज हो गईं थीं कि शायद तुर्किये F-35 कार्यक्रम में लौटने के बदले S-400 को किसी तीसरे देश को सौंपने के लिए तैयार हो सकता है. भारतीय मीडिया के कुछ हिस्सों में भी रिपोर्ट्स आईं कि इस सिस्टम को भारत भेजा जा सकता है. अब तुर्की की सेना ने इन सभी बातों को 'अफवाह' बताते हुए नकार दिया है.
S-400 विवाद का पूरा मामला क्या है?
2017 में तुर्की ने रूस के साथ S-400 सिस्टम खरीदने की डील की थी, और 2019 में इसकी पहली खेप तुर्की पहुंची थी. इस कदम ने तुरंत ही नाटो सहयोगी अमेरिका और तुर्की के रिश्तों में बड़ी खटास पैदा कर दी थी.
-
अमेरिका का विरोध: अमेरिका का कड़ा रुख था कि एक NATO सदस्य देश रूस की उन्नत मिसाइल प्रणाली नहीं चला सकता. अमेरिका का तर्क था कि S-400 के रडार और सेंसर अमेरिकी F-35 स्टेल्थ जेट की संवेदनशील सुरक्षा जानकारी को भेद सकते हैं और यह जानकारी रूस तक जा सकती है, जिससे NATO की सुरक्षा को खतरा होगा.
-
परिणाम: इस विवाद के परिणामस्वरूप, अमेरिका ने तुर्की को F-35 प्रोग्राम से बाहर कर दिया, जबकि तुर्की पहले ही ये जेट खरीदने के लिए 1.4 अरब डॉलर का भुगतान कर चुका था. यह पैसा अभी तक वापस नहीं किया गया है.
भारत के लिए प्रासंगिकता का सवाल
कई रिपोर्ट्स दावा कर रही थीं कि तुर्की S-400 को अमेरिका को रिसर्च के लिए या किसी तीसरे देश को सौंप सकता है. इन रिपोर्ट्स में भारत का नाम भी सामने आया, क्योंकि भारत पहले से ही रूस का S-400 इस्तेमाल कर रहा है.
हालांकि, रक्षा विशेषज्ञों का मानना है कि दोनों S-400 में बहुत अंतर है. विशेषज्ञों के अनुसार, रूस ने तुर्की को S-400 का वह संस्करण दिया है जो विशेष रूप से निर्यात (Export) के लिए बनाया जाता है. ऐसा इसलिए किया गया ताकि NATO देशों के साथ संभावित तैनाती में, रूस के रडार कोड्स को समझा न जा सके. इसके विपरीत, भारत को रूस ने वही एयर डिफेंस सिस्टम दिया है जिसका इस्तेमाल वह खुद करता है. ऐसे में, तुर्की का सिस्टम भारत के लिए सैन्य रूप से ज्यादा उपयोगी नहीं होगा.