संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा रूस की दो प्रमुख तेल कंपनियों पर नए प्रतिबंध लगाने के बाद, इसका असर वैश्विक ऊर्जा बाजार पर तुरंत दिखने लगा है। चीन की प्रमुख रिफाइनरी कंपनियों ने समुद्री मार्ग से आने वाले रूसी कच्चे तेल (Russian Oil) का आयात तत्काल प्रभाव से निलंबित (Suspend) कर दिया है। यह फैसला मास्को के लिए एक बड़ा आर्थिक झटका है और यह दिखाता है कि अमेरिकी कार्रवाई का दायरा कितना व्यापक है।
रॉयटर्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, व्यापारिक सूत्रों ने पुष्टि की है कि अमेरिका द्वारा रूस की दो सबसे बड़ी तेल कंपनियों—रोसनेफ्ट (Rosneft) और लुकोइल (Lukoil)—पर प्रतिबंध लगाए जाने के कारण चीनी कंपनियाँ जोखिम लेने से बच रही हैं।
चीनी राष्ट्रीय कंपनियों ने दूरी बनाई
प्रतिबंधों की आशंका को देखते हुए, चीन की प्रमुख राष्ट्रीय तेल कंपनियाँ—पेट्रोचाइना (PetroChina), सिनोपेक (Sinopec), सीएनओओसी (CNOOC) और झेनहुआ ऑयल (Zhenhua Oil)—कम से कम अल्पावधि (short term) के लिए समुद्री मार्ग से रूसी तेल के व्यापार से दूर रहेंगी। चीन वर्तमान में समुद्र के रास्ते प्रतिदिन लगभग 1.4 मिलियन बैरल (Million Barrels per Day- bpd) रूसी तेल का आयात करता है, जिसका एक बड़ा हिस्सा निजी (Private) रिफाइनरियों द्वारा खरीदा जाता है। हालांकि कई व्यापारी मानते हैं कि स्वतंत्र रिफाइनरियां प्रतिबंधों के प्रभाव का आकलन करने के लिए खरीद रोक सकती हैं, लेकिन वे अंततः रूसी तेल खरीदना जारी रखने पर विचार कर सकती हैं। यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि चीन पाइपलाइन के माध्यम से भी लगभग 900,000 bpd रूसी तेल का आयात करता है, और व्यापारियों का कहना है कि पाइपलाइन आपूर्ति पर इन प्रतिबंधों का अधिक असर होने की संभावना कम है।
भारत भी रूसी तेल खरीद में कर सकता है कटौती
केवल चीन ही नहीं, बल्कि भारत पर भी अमेरिकी प्रतिबंधों का दबाव दिखने लगा है। रिपोर्टों के अनुसार, भारत की तेल कंपनियों द्वारा भी रूसी तेल की खरीदारी में कटौती किए जाने की संभावना है। यह फैसला मुख्य रूप से अमेरिकी हैवी टैरिफ (Heavy Tariffs) से बचने की रणनीति के तहत लिया जा सकता है। हालांकि भारत सरकार की ओर से रूसी तेल के आयात में कटौती को लेकर कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों की प्रकृति को देखते हुए, भारतीय कंपनियों को संभावित दंडात्मक कार्रवाई से बचने के लिए एहतियाती कदम उठाने पड़ सकते हैं।
वैश्विक तेल बाजार पर संभावित असर
रूस के दो सबसे बड़े ग्राहकों चीन और भारत की ओर से तेल की मांग में यह संभावित गिरावट मॉस्को के तेल राजस्व पर सीधा दबाव डालेगी। इसका एक बड़ा असर वैश्विक बाजार पर भी पड़ने की आशंका है। मूल्यों में वृद्धि: रूस से आपूर्ति में कमी आने से विश्व के शीर्ष तेल आयातकों को वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी पड़ेगी, जिससे वैश्विक तेल कीमतें बढ़ने की संभावना है। अन्य आपूर्तिकर्ताओं की कीमतें: विशेषज्ञों का मानना है कि जैसे ही भारत और चीन अन्य आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख करेंगे, मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका से आने वाले तेल की कीमतों में उछाल आएगा। यह घटनाक्रम दर्शाता है कि रूस पर लगाए गए अमेरिकी प्रतिबंधों ने किस तरह से वैश्विक ऊर्जा व्यापार के जटिल ताने-बाने को प्रभावित करना शुरू कर दिया है, जिससे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अनिश्चितता और तनाव का माहौल बन गया है।