मुंबई, 24 दिसंबर, (न्यूज़ हेल्पलाइन)। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन को राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष नियुक्त किया। अब कांग्रेस ने उनकी नियुक्ति पर सवाल उठाए हैं। कांग्रेस की ओर से जारी किए गए नोट में कहा गया है कि NHRC के चेरयपर्सन की सिलेक्शन कमेटी में लोकसभा के नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे भी थे, लेकिन उनकी राय को गंभीरता से नहीं लिया गया। कांग्रेस ने कहा कि चयन समिति की बैठक बुधवार को हुई थी, लेकिन यह पहले से निर्धारित एक्सरसाइज थी। इसमें एक-दूसरे की सहमति लेने की परंपरा को नजरअंदाज कर दिया गया। ऐसे मामलों में यह आवश्यक होता है। यह निष्पक्षता के प्रिंसिपल को कमजोर करता है, जो चयन समिति की विश्वसनीयता के लिए महत्वपूर्ण है। सभी की राय लेने विचार करने को बढ़ावा देने के बजाय समिति ने बहुमत पर भरोसा किया। इस मीटिंग में कई वाजिब चिंताएं उठाई गई थीं, लेकिन उसे दरकिनार कर दिया गया। दरअसल, वी रामासुब्रमण्यन राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग अध्यक्ष नियुक्त किए गए। उनसे पहले सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अरुण कुमार मिश्रा आयोग के अध्यक्ष थे। वे इसी साल 1 जून को इस पद से रिटायर हुए थे। तब से ही आयोग की सदस्य विजया भारती स्यानी कार्यवाहक अध्यक्ष की जिम्मेदारी निभा रही थीं।
आपको बता दें, राहुल और खड़गे ने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन और जस्टिस केएम जोसेफ के नाम पर सहमति जताई थी। राहुल गांधी और खड़गे ने मेरिट और समावेशिता का ध्यान में रखते हुए ये नाम सुझाए थे। राहुल और खड़गे ने कहा था कि NHRC एक महत्वपूर्ण संस्था है। इसका काम समाज के हाशिए पर पड़े वर्गों के लोगों के लोगों के मौलिक मानवाधिकारों की रक्षा करना है। जरूरी है कि NHRC अलग-अलग समुदायों की चिंताओं पर ध्यान दे। उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन के प्रति संवेदनशीलता बने रहे। जस्टिस रोहिंटन फली नरीमन अल्पसंख्यक पारसी समुदाय से आते हैं। वे संविधान के प्रति अपने कमिटमेंट के लिए जाने जाते हैं। अगर उन्हें चेयरमैन बनाया जाता तो NHRC का देश के लिए समर्पण का मजबूत संदेश जाता। इसी तरह, एक और अल्पसंख्यक ईसाई समुदाय से आने वाले जस्टिस कुट्टियिल मैथ्यू जोसेफ ने भी ऐसे कई फैसले देते हैं, जो व्यक्तिगत स्वतंत्रता और हाशिए पर पड़े वर्गों की सुरक्षा पर जोर देता है।