दीपावली के अगले दिन गोवर्धन पूजा की जाती है। ऐसा माना जाता है कि गाय देवी लक्ष्मी का रूप है। इस दिन भगवान कृष्ण ने गिरिराज की पूजा की थी।
गायों को सुबह स्नान कराया जाता है और फूल, माला, धूप, चंदन आदि से पूजा की जाती है। गोवर्धन को गोबर से बनाया जाता है। गोवर्धन पर्वत की इस गोबर से बनाई गई प्रतिमा को गोवर्धन बाबा के रूप में स्थापित किया जाता है।
पूजा के बाद, गोवर्धनजी की सात परिक्रमा की जाती है |
गोवर्धनजी के नाभि के स्थान पर एक कटोरा या मिट्टी का दीपक रखा जाता है। फिर दूध, दही, गंगाजल, शहद, सुपारी आदि का प्रसाद के रूप में वितरण किया जाता है।
इस त्योहार को सबसे ज्यादा श्री कृष्ण की जन्मभूमि में यानी कि मथुरा, काशी, गोकुल, वृ्न्दावन में मनाया जाता है, लेकिन राजस्थान में इसका विशेष महत्व माना जात है। गोवेर्धन पूजा के दिन चाँद नहीं देखा जाता |
हिन्दू पंचांग के अनुसार, कार्तिक माह शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा को गोवर्धन पूजा का त्यौहार मनाया जाता है। लोग इसे अन्नकूट के नाम से भी जानते हैं।
इसी दिन भगवान श्री कृष्ण ने अपनी कनिष्ठ ऊँगली से गोवर्धन पर्वत को उठाया था। इंद्र के प्रकोप और उनका अहंकार तोड़ने के लिए ही भगवान ने अपनी कनिष्ठ ऊँगली का प्रयोग किया।
इस दिन तरह तरह के अनाज के भोजन व स्वादिष्ट पकवान बनाए जाते है। भगवान श्री कृष्ण को भोग लगाने के बाद सभी इस महा प्रसाद को ग्रहण करते है |