वर्ष 2011, भारतीय क्रिकेट इतिहास का वो स्वर्णिम पल था जब एमएस धोनी की कप्तानी में टीम इंडिया ने 28 साल बाद वनडे विश्व कप जीतकर पूरे देश को जश्न में डुबो दिया। फाइनल में श्रीलंका को हराकर टीम इंडिया ने न केवल इतिहास रचा, बल्कि एक ऐसी यादगार जीत दी, जिसे आज भी हर भारतीय फख्र से याद करता है। इस जीत में एक खिलाड़ी का योगदान सबसे ज़्यादा याद किया जाता है – युवराज सिंह। लेकिन अब, 14 साल बाद उस जीत के एक राज से पर्दा हटा है।
गैरी कर्स्टन का बड़ा खुलासा – मुश्किल था युवराज का चयन
टीम इंडिया के उस समय के हेड कोच गैरी कर्स्टन ने एक अहम खुलासा किया है। उन्होंने रेडिफ.कॉम से बातचीत में बताया कि युवराज सिंह का 2011 वर्ल्ड कप की टीम में चयन इतना आसान नहीं था। सेलेक्टर्स के बीच 15 खिलाड़ियों को लेकर काफी बहस हुई थी। कर्स्टन ने कहा, “शुक्र है कि हमने अंत में युवराज को टीम में चुना। मैं हमेशा से उनका बहुत बड़ा प्रशंसक रहा हूँ। हमारे बीच बहुत अच्छे रिश्ते थे, भले ही वो कभी-कभी मुझे परेशान कर देते थे। लेकिन मैं उनसे प्यार करता था, क्योंकि वो एक अद्भुत खिलाड़ी थे।”
धोनी की थी युवराज को टीम में रखने की खास इच्छा
कोच गैरी कर्स्टन ने आगे बताया कि युवराज सिंह को टीम में बनाए रखने के लिए कप्तान एमएस धोनी और उन्होंने खुद बहुत ज़ोर दिया था। उनका मानना था कि युवराज के पास वह अनुभव है जो बड़े मैचों में काम आता है। और वही हुआ भी – युवराज का अनुभव और ऑलराउंडर प्रदर्शन टीम इंडिया के लिए गेमचेंजर साबित हुआ।
कर्स्टन ने यह भी कहा कि, “मैं और धोनी दोनों चाहते थे कि युवराज टीम में रहें। उन्होंने कई बड़े मौकों पर परिपक्वता दिखाई थी और हमें यही चाहिए था। फाइनली, हमने टूर्नामेंट भी जीता और साबित कर दिया कि युवराज का चयन सही फैसला था।”
वर्ल्ड कप 2011 में युवराज का प्रदर्शन – बल्ले और गेंद से दोनों में शानदार
युवराज सिंह का प्रदर्शन इस टूर्नामेंट में ऐतिहासिक रहा। उन्होंने 9 मैचों में 362 रन बनाए जिसमें एक शतक और चार अर्धशतक शामिल थे। उनका बल्लेबाज़ी औसत 90 के पार था, जो बताता है कि वो कितने विश्वसनीय थे। गेंद से भी उन्होंने कमाल किया और 15 विकेट चटकाए। ऑलराउंड प्रदर्शन के दम पर उन्हें वर्ल्ड कप 2011 का प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट घोषित किया गया।
युवराज की सबसे यादगार परफॉर्मेंस में पाकिस्तान के खिलाफ सेमीफाइनल और वेस्टइंडीज के खिलाफ शतक शामिल है। उन्होंने पूरे टूर्नामेंट में अपनी फॉर्म से टीम इंडिया को जीत की ओर लगातार अग्रसर रखा।
फाइनल में धोनी का छक्का और युवराज का योगदान
2 अप्रैल 2011 को मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में भारत ने श्रीलंका को 6 विकेट से हराकर वर्ल्ड कप जीता। धोनी के छक्के ने जहां जीत की मुहर लगाई, वहीं युवराज सिंह ने अंत तक नाबाद रहकर टीम को संभाला। युवराज ने फाइनल में बल्ले से 21 रन बनाए और जीत के बाद भावुक होकर मैदान पर गिर पड़े थे। यह पल हर क्रिकेट फैन की आंखों में आज भी ताज़ा है।
चयन प्रक्रिया पर बहस क्यों?
अब सवाल उठता है – जब युवराज इतने शानदार खिलाड़ी थे, तो उनके चयन पर बहस क्यों हुई? इसका कारण था उनका टूर्नामेंट से पहले का फॉर्म। वर्ल्ड कप से कुछ महीने पहले युवराज बल्ले और गेंद दोनों से संघर्ष कर रहे थे। कई लोग मान रहे थे कि वह फिट नहीं हैं और किसी युवा खिलाड़ी को मौका मिलना चाहिए। लेकिन कप्तान और कोच का विश्वास उनके अनुभव पर था और वही भारत को दूसरी बार वर्ल्ड कप दिलाने में सफल रहा।
युवराज की विरासत
आज, 14 साल बाद, जब गैरी कर्स्टन का यह बयान सामने आया है, तो यह साबित करता है कि किसी खिलाड़ी की सच्ची काबिलियत आंकड़ों से ज्यादा आत्मविश्वास और जज़्बे में होती है। युवराज सिंह ने अपनी मेहनत, प्रतिभा और जज्बे से न केवल वर्ल्ड कप जिताया बल्कि यह भी सिखाया कि जब पूरी दुनिया शक करे, तब एक भरोसा ही जीत की नींव बन सकता है।
निष्कर्ष:
वर्ल्ड कप 2011 की जीत भारतीय क्रिकेट के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में दर्ज है। और उस जीत के नायक युवराज सिंह का सफर भी उतना ही प्रेरणादायक है। गैरी कर्स्टन का यह खुलासा दर्शाता है कि हर महान खिलाड़ी को भी कभी न कभी खुद को साबित करने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। लेकिन अगर टीम मैनेजमेंट और कप्तान का समर्थन हो, तो वही खिलाड़ी इतिहास रच सकता है – जैसा युवराज ने किया।