नए साल 2026 में भारतीय राजनीति की बिसात पर राज्यसभा एक बड़ा केंद्र बनने जा रही है। ऊपरी सदन में होने वाले यह बदलाव न केवल सांसदों के चेहरों को बदलेंगे, बल्कि सदन के भीतर सत्ता पक्ष और विपक्ष के शक्ति संतुलन को भी नई दिशा देंगे। अप्रैल से नवंबर 2026 के बीच खाली होने वाली इन 73 सीटों पर होने वाले चुनाव भारतीय संसद के समीकरणों के लिए निर्णायक साबित होंगे।
2026 का चुनावी कैलेंडर और सीटों का गणित
राज्यसभा की ये 73 सीटें देश के विभिन्न राज्यों से खाली हो रही हैं। चूंकि राज्यसभा सांसदों का चुनाव राज्य विधानसभाओं के विधायकों (MLAs) द्वारा किया जाता है, इसलिए हालिया विधानसभा चुनावों के नतीजे इन सीटों के भाग्य का फैसला करेंगे।
| राज्य |
खाली होने वाली सीटें |
प्रमुख रिटायर होने वाले नाम |
| उत्तर प्रदेश |
10 |
हरदीप सिंह पुरी, दिनेश शर्मा, रामगोपाल यादव |
| महाराष्ट्र |
07 |
शरद पवार, रामदास आठवले, प्रियंका चतुर्वेदी |
| तमिलनाडु |
06 |
कनिमोझी, तिरुचि शिवा |
| बिहार |
05 |
हरिवंश नारायण सिंह, रामनाथ ठाकुर, उपेन्द्र कुशवाहा |
| पश्चिम बंगाल |
05 |
अभिषेक मनु सिंघवी, सुब्रत बख्शी |
| गुजरात |
04 |
शक्ति सिंह गोहिल, नरहरी अमीन |
| आंध्र प्रदेश |
04 |
अल्ला अयोध्या रामी रेड्डी |
क्या बदलेगा सदन का समीकरण?
2026 के इन चुनावों के बाद राज्यसभा के भीतर NDA (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) और INDIA ब्लॉक की ताकत में महत्वपूर्ण फेरबदल की संभावना है:
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NDA की बढ़त की उम्मीद: उत्तर प्रदेश और गुजरात जैसे राज्यों में भाजपा की मजबूत स्थिति के कारण, एनडीए अपनी सीटों की संख्या में इजाफा कर सकता है। इससे सरकार को महत्वपूर्ण विधेयकों और संवैधानिक संशोधनों को पारित कराने में आसानी होगी।
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विपक्ष की चुनौती: महाराष्ट्र और बिहार में बदलते राजनीतिक गठबंधन (जैसे महायुति बनाम MVA) का असर राज्यसभा की सीटों पर सीधा पड़ेगा। यदि विपक्षी दल एकजुट रहते हैं, तो वे अपनी कुछ प्रमुख सीटों को बचाने में सफल हो सकते हैं।
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दिग्गजों की विदाई: मल्लिकार्जुन खरगे, शरद पवार और दिग्विजय सिंह जैसे कद्दावर नेताओं का कार्यकाल खत्म होना विपक्ष के लिए एक बड़ा रणनीतिक घाटा हो सकता है, बशर्ते उन्हें फिर से सदन में न भेजा जाए।
विधायी कार्यकाज पर प्रभाव
राज्यसभा एक स्थायी सदन है और इसके एक-तिहाई सदस्य हर दो साल में रिटायर होते हैं। 2026 की रिक्तियां इसलिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि:
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निर्णायक बहुमत: यदि एनडीए 123 के जादुई आंकड़े के और करीब पहुंचता है, तो 'विवादास्पद' सुधारों को लागू करना सरकार के लिए सरल हो जाएगा।
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क्षेत्रीय दलों की भूमिका: वाईएसआरसीपी, बीजेडी और टीआरएस (बीआरएस) जैसे दलों की सीटों में कमी या बढ़ोतरी यह तय करेगी कि 'किंगमेकर' की भूमिका में कौन रहेगा।
निष्कर्ष
राज्यसभा चुनाव 2026 केवल सांसदों के बदलने का जरिया नहीं है, बल्कि यह प्रधानमंत्री मोदी के तीसरे कार्यकाल की विधायी शक्ति का लिटमस टेस्ट भी होगा। जहां भाजपा अपनी संख्या बल बढ़ाकर 'अपर हाउस' पर नियंत्रण मजबूत करना चाहेगी, वहीं विपक्ष के लिए यह अपनी घटती ताकत को रोकने की एक बड़ी चुनौती होगी।