जब अमेरिका ने 2025 के मध्य में भारतीय वस्तुओं पर भारी सीमा शुल्क (Tariff) लगाने की घोषणा की, तो वैश्विक विशेषज्ञों ने कयास लगाए थे कि भारत का एक्सपोर्ट इंजन थम जाएगा। इसके विपरीत, भारतीय निर्यातकों ने अपने बाजारों का विविधीकरण (Diversification) करके और नए क्षेत्रों में पैठ बनाकर 'ट्रंप टैरिफ' के असर को बेअसर कर दिया। व्यापार मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना सटीक बैठता है— "व्यापार पानी की तरह है, यह अपना मार्ग खुद ढूंढ लेता है।"
निर्यात के आंकड़े: चुनौतियों के बीच लचीलापन
भारत के निर्यात का सफर पिछले पांच वर्षों में काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है, लेकिन इसकी दिशा हमेशा ऊपर की ओर रही है:
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ऐतिहासिक ऊंचाई: वाणिज्य सचिव राजेश अग्रवाल के अनुसार, वित्त वर्ष 2024-25 में भारत का माल और सेवा निर्यात 825.25 अरब डॉलर के रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया, जो 6% की वार्षिक वृद्धि को दर्शाता है।
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अमेरिकी बाजार में वापसी: टैरिफ के कारण सितंबर-अक्टूबर 2025 में कुछ गिरावट जरूर देखी गई, लेकिन नवंबर 2025 में अमेरिका को होने वाला निर्यात 22.61% बढ़कर 6.98 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह दर्शाता है कि अमेरिकी बाजार में भारतीय उत्पादों की मांग टैरिफ के बावजूद बनी हुई है।
विविधीकरण और नए बाजारों की स्वीकार्यता
भारत की सफलता का राज 'बाजारों को बांटने' की नीति में छिपा है। भारत ने केवल अमेरिका पर निर्भर रहने के बजाय यूरोपीय संघ, पश्चिम एशिया और अफ्रीका जैसे बाजारों में अपनी पकड़ मजबूत की है।
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इलेक्ट्रॉनिक्स में क्रांति: मोबाइल और इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात में 39% की भारी वृद्धि दर्ज की गई है। एप्पल और अन्य वैश्विक कंपनियों द्वारा भारत में क्षमता निर्माण (FDI) ने भारत को ग्लोबल सप्लाई चेन का एक अनिवार्य हिस्सा बना दिया है।
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प्रमुख क्षेत्र: इंजीनियरिंग सामान, दवाएं (Pharma), और वाहन निर्यात ने निरंतर गति बनाए रखी है, जिससे व्यापार घाटे को संतुलित करने में मदद मिली है।
2026 की राह: सरकार की तैयारी
विश्व व्यापार संगठन (WTO) ने 2026 में वैश्विक व्यापार वृद्धि दर घटकर महज 0.5% रहने की चेतावनी दी है। इस मंदी से निपटने के लिए भारत सरकार ने निर्यातकों के लिए सुरक्षा कवच तैयार किया है:
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वित्तीय सहायता: 25,060 करोड़ रुपये का निर्यात प्रचार मिशन और 20,000 करोड़ रुपये की बिना गिरवी क्रेडिट सुविधा।
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नए व्यापार समझौते (FTA): 2026 में ब्रिटेन, ओमान और न्यूजीलैंड के साथ होने वाले मुक्त व्यापार समझौते भारतीय वस्तुओं के लिए नए द्वार खोलेंगे।
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लचीली नीतियां: सरकार यूरोपीय संघ के साथ भी व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने की कोशिश कर रही है ताकि टैरिफ के दबाव को कम किया जा सके।
निष्कर्ष
भारतीय निर्यातकों ने यह साबित कर दिया है कि वे रूस-यूक्रेन युद्ध, लाल सागर संकट और उच्च टैरिफ जैसी किसी भी वैश्विक बाधा से पार पाने में सक्षम हैं। 2026 में घरेलू विनिर्माण क्षमता और नए एफटीए (FTA) के दम पर भारत के निर्यात में और भी मजबूती आने की प्रबल संभावना है।